Headlines

जंगल के बीच में है मां का दरबार, सरई के पेड़ पर विराजी हैं मां सरई श्रृंगारणी देवी

जांजगीर-चांपा। ब्लॉक मुख्यालय बलौदा से 5 किमी की दूरी पर ​स्थित मां सरई श्रृंगारणी धाम डोंगरी बलौदा में भक्त अपनी मनोकामना लेकर आते हैं। मां सरई श्रृंगार देवी अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करती है। मंदिर में शारदीय और चैत्र नवरात्रि में कलशों की स्थापना किया जाता है। मां सराई श्रृंगार क बारे में बताया जाता है कि लगभग ढाई से तीन सौ वर्ष पूर्व बलौदा व आसपास के ग्राम में घनघोर जंगल था। पूर्व दिशा में कोरबा जाने वाली मुख्य मार्ग में बलौदा नगर से लगभग 3-4 किलोमीटर की दूरी पर डोंगरी ग्राम में सरई और साल जैसे कई पेड़ों का घनघोर जंगल हुआ करता था। ग्राम भिलाई का एक साहू तेली सरई के जंगल में लकड़ी काटने के लिए गया था। जंगल में उसे दो बड़े सरई के पेड़ दिखे उस पेड़ को काटकर भैंसा गाड़ी में लादकर अपने घर ले जाने लगा, तब रास्ते में भैंसा गाड़ी फंस गया। काफी कोशिशों के बावजूद वह गाड़ी नहीं निकल पाया तब तक शाम हो गई। तब वह व्यक्ति भैंसा गाड़ी छोड़कर अपने घर वापस आ गया। दूसरे दिन वह गांव के कुछ अन्य लोगों के साथ वहां पहुंचा और देखा कि गाड़ी वहां पर है, लेकिन जो वृक्ष उसने काट कर गाड़ी में रखे थे वह नहीं हैं। आसपास ढूंढने पर वह वृक्ष पुनः उसी स्थान पर जीवित पेड़ के रूप में खड़े मिले। वह फिर उस पेड़ को काटने लगा तब उसे मां सरई श्रृंगारिणी का कोप भंजन बनना पड़ा। इसे देखकर उसके साथ आए हुए अन्य लोग आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने गांव पहुंचकर सूचना दी। जिसके बाद ग्राम के प्रमुख मालगुजार और ग्राम के बैगा ने मां सराई सिंगार का अनुनय विनय प्रार्थना पूजा अर्चना विधि विधान से की और उसके बाद उसी समय से चैत्र नवरात्र एवं कंवार नवरात्र में मां दुर्गा रूपी मां सरई श्रृंगारिणी की पूजा अर्चना किया जाने लगा। एक बार नवरात्रि में माता की सेवा नहीं की गई तो दूसरे दिन से ही पूरे ग्राम में दैविय प्रकोप के कारण लोग बीमारियों से गिर गए। ग्राम के बैगा एवं ग्रामवासियों की मदद से मां के समक्ष क्षमा प्रार्थना कर विधि-विधान से पूजा-अर्चना की गई तब मां शांत हुई तब से लेकर आज तक नवरात्रि में जवा कलश, तेल कलश, ज्योति कलश जलाए जाते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि वर्ष 1887-88 से अखंड ज्योति कलश प्रज्वलित हैं। शारदीय क्वार नवरात्रि में लगभग 11 सौ कलशों की स्थापना किया गया है। अखंड धुनी व अखंड ज्योति कलश आज भी दर्शनीय है। मां सरई श्रृंगारिणी देवी धाम डोगरी समिति के अध्यक्ष मनोहर सिंह एवं सचिव कमल किशोर ने बताया कि मां सरई श्रृंगार धाम में मालगुजार ठाकुर रघुनंदन सिंह नियमित सेवा आराधना किया करते थे। मालगुजार के आराधना मात्र से ही माता के दरबार का पाठ खुल जाते थे। इसके बाद यहां पर एक मंगल बाबा ब्रह्मा करते हुए पहुंचे और मां के दर्शन कर अभिभूत हो गए। उन्होंने यहां धुनी जलाकर मां की सेवा और आराधना करने लगा। जिसकी अखंड धुनी और अखंड ज्योति कलश आज भी माता के दरबार में प्रज्ज्वलित है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *